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MAHILA SWASTHYA

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मातृत्व स्वास्थ्य से ही होगा स्वस्थ भारत का निर्माण (बृजेश कुमार सिंह)

अखबार का पहला पन्ना पलटते ही मोटी सी लाइन ‘‘प्रसव के दौरान महिला की मृत्यु’’ आजकल हम लगभग सभी दैनिक अखबारों में सुबह-सुबह पढ़ते ही हैं और अब आदत सी भी हो गयी है। क्योंकि इस पर हम प्रश्न ही नहीं उठाते।भारत गांवों का देश कहा जाता है। जहां की कुल जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत आज भी गांवों में
निवास करता है तथा वह अपने अधिकारों और सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं के जानकारी से कोषों दूर है। भारत सरकार व राज्य सरकारें अपने-अपने माध्यम से मातृ स्वास्थ्य के बेहतर स्थिति के लिए प्रयासरत भी हैं लेकिन सुविधा प्राप्त करने वाले तथा सुविधा देने वालों के बीच में बहुत बड़ी खाई बनी हुई है। इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने के दौरान उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार तथा ऐसी स्थिति में उनके साथ आवाज मिलाने वालों के अभाव के कारण भी यह स्थिति निरंतर चिन्ता का विषय बनी हुई है। जिसपर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो सारे प्रयास निरर्थक ही साबित होंगे ।

तथ्यगत आंकड़ों के आधार पर देखें तो पता चलता है कि पूरे भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश में मातृ मृत्यु दर सबसे अधिक है। मातृत्व मृत्यु अनुपात यह इंगित करता है कि गर्भावस्था और बच्चा पैदा करने से जुड़े कारणों की वजह से कितनी महिलाओं की मृत्यु हो सकती है। हाल में रजिस्ट्रार जनरल भारत सरकार द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार (2004-06 के मध्य हुए जन्म पर आधारित) उत्तर प्रदेश में प्रत्येक एक लाख जन्म पर 440 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। यही संख्या वर्ष 2001-03 में और 1995 में क्रमशः 517 और 707 थी। विगत की तुलना में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रयासों के माध्यम से मातृ मृत्यु दर में कमी हुई है । लेकिन अफसोस है कि इसके घटने के बावजूद उत्तर प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 28 हजार महिलाओं की मातृ मृत्यु हो जाती है और लगभग 6 लाख महिलाएं जिन्दगी और मौत के बीच जूझते रहने की स्थिति में रहने के लिए मजबूर हो जाती हैं।
इस प्रकार की मातृ मृत्यु के कारणों का विश्लेषण करने पर हमें ज्ञात होता है कि 50 प्रतिशत कारण तो स्वास्थ्य सम्बन्धी शारीरिक कारण हैं किन्तु 50 प्रतिशत कारण जटिल प्रसव एवं होने वाली असुविधाएं ही हैं। इस प्रकार से कहें तो प्रसव दौरान होने वाली असुविधाओं को केवल दूर करके ही हम इस मातृ मृत्यु दर को आधा कर सकते हैं। इन्हीं स्थितियों से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में ‘‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’’ योजना की शुरूआत भी की गयी। जिसमें मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य को मुख्य रूप से फोकस किया गया है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रारम्भ से अब तक मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के विषय मंे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन व जिला स्तरीय घरेलू सर्वेक्षण 2008 के अनुसार देखें तो – जननी सुरक्षा योजना लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय हुई है। वर्ष 2007-08 के दौरान लगभग 16 लाख से अधिक महिलाओं ने इसका लाभ लिया किन्तु डी0 एल0 एच0 एस0-3 के मुताबिक 47 प्रतिशत महिलाओं को ही इस योजना के तहत नगद राशि प्राप्त हुई। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में संस्थागत प्रसव पर ही जोर दिया गया है और उसी को प्रोत्साहित भी नगद राशि देकर किया जा रहा है। जबकि स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। डी0 एल0 एच0 एस0-3 के अनुसार लकभग 75 प्रतिशत महिलाओं के प्रसव आज भी संस्थागत नहीं बल्कि घर पर ही होते हैं। उत्तर प्रदेश के 3660 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से केवल 615 पी0 एच0 सी0 को 24 ग 7 माना गया है, 325 पी0 एच0 सी0 ऐसी हैं जहां 3 नर्सें हैं। डी0 एल0 एच0 एस0-3 के अनुसार जिन 615 पी0 एच0 सी0 को 24 ग 7 काम करने योग्य माना गया है उनमें से 45.5 प्रतिशत ही 24 ग 7 काम करती पायी गयीं और इनमें से केवल 11 प्रतिशत में नवजात शिशु सम्बन्धित सेवाएं, 17 प्रतिशत में ही रेफरल सेवाएं तथा 20 प्रतिशत से भी कम में एक माह में 10 प्रसव हो पाते हैं।

इन आंकड़ों के आधार पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में संस्थागत प्रसव बढ़ा है परन्तु अभी भी ज्यादातर पी0 एच0 सी0 जटिलताओं का सामाना करने के लिए सुविधाओं से पूर्ण नहीं है। बहुत कम पी0 एच0 सी0 हैं जहां आपातकालीन प्रसव की सुविधा उपलब्ध हो तथा ब्लड बैंक की सुविधा उपलब्ध हो । मातृत्व स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं से जूझने के लिए इनको सही करना अति आवश्यक है।

मातृत्व अस्वस्थता में जैसा कि हम सभी जानते हैं बाल विवाह, बार-बार गर्भधारण, गर्भधारण में कम अन्तराल और महिलाओं में खून की कमी कुछ ऐसे कारक हैं कि जिन्हें हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं । इन कारणों से भी इन महिलाओं को जटिलता का सामाना करना पड़ता है और मातृत्व मृत्यु का ग्राफ प्रभावित होता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 के अनुसार सम्पूर्ण भारतवर्ष की तुलना में उत्तर-प्रदेश की महिलाओं ने बहुत कम मातृत्व स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त की।

उत्तर-प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में ‘‘उत्तर-प्रदेश में मातृ स्वास्थ्य की स्थिति पर जन सुनवायी (31 अगस्त 2009)’’ के दौरान आशा देवी से अस्पताल में सेवा कर्मियों के व्यवहार व संवेदनशीलता को लेकर बात करने पर उन्होंने कहा कि ‘‘अस्पताल वालों के बुरे व्यवहार व गुस्से के कारण हम सरकारी अस्पताल में अब नहीं जाना चाहते और इसकी तुलना में घर पर ही प्रसव कराना अच्छा समझते हैं।’’ भ्रष्टाचार और अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा लेने में होने वाले खर्च पर गुजराती देवी ने अपना अनुभव रखते हुए कहा कि- ‘‘अस्पताले कऽ डाक्टर अउर नर्स हमहनें कऽ जिनगी ना, खाली पइसा देखे नऽ, कउनो अइसन नियम सरकार के बनावे के चाही जउने से ई लोग हम गरीबवन से पइसा र्न अइंठ पावें अउर डेरायें कि बदमाशी करब त हमार नौकरी चलि जाई ।’’ एक दूसरी महिला से बात करने पर उसने कहा कि- ‘‘अस्पताल में जाने के बाद नर्स और डाक्टर डांटते व गाली भी देते हैं। हम उनके पास बार-बार गाली सुनने अब नहीं जायेंगे।’’ समूह की कुछ महिलाओं ने कहा कि- ‘‘लोग कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क और अच्छी व्यवस्था है, भगवान जाने क्या अच्छी व्यवस्था है हमारी समझ में नहीं आता है।’’ दूसरी ओर सुविधा दाता कर्मियांे, अस्पताल के सेवा कर्मियों के व्यवहार तथा इनकी असंवेदनशीलता को भी हम दरकिनार नहीं कर सकते। इस प्रकार की स्थितियों को बिना बदले हम मातृत्व व बाल स्वास्थ्य के बेहतर स्थिति की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। विख्यात फ्रेंच लेखिका सीमोन द बोउवा ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘‘द सेकेण्ड सेक्स’’ में लिखा है कि- ‘‘स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि उसे बना दिया जाता है।’’ उनकी यह टिप्पणी भारत ही नहीं पूरी दुनिया में औरतों के गैर बराबरी को बताने के लिए सक्षम है।

मातृत्व स्वास्थ्य के साथ ही यदि हम बाल स्वास्थ्य की स्थिति पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में पोषण की स्थिति भी दयनीय है। देश का प्रत्येक छठां कुपोषित बच्चा उत्तर प्रदेश राज्य का निवासी है, उत्तर प्रदेश में प्रत्येक दूसरी किशोर बालिका खून की कमी से ग्रसित है, लगभग 49 प्रतिशत महिलाओं का भार 45 किलोग्राम से कम है, 3 प्रतिशत से भी कम महिलाएं आयरन व फालिक एसिड की गोलियों की पूर्ण खुराक को प्राप्त कर पाती हैं, 20 नवजात शिशु में से केवल 1 शिशु जन्म के एक घण्टे के अन्दर दुग्धपान कर पाता है, 16 में से 1 बच्चा ही विटामिन ‘ए’ की खुराक, 12-23 माह के भीतर में 5 में से केवल 1 बच्चा ही पूर्ण टीकाकरण प्राप्त कर पाता है। केवल 47 प्रतिशत घरों में ही आयोडिन युक्त नमक पहुंच पाता है, केवल 23 प्रतिशत महिलाएं ही शिशु जन्म के पश्चात स्वास्थ्य की जांच कराती हैं और लगभग 64 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु तक हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग उत्तर प्रदेश, दिसम्बर 2005, उत्तर प्रदेश सरकार राज्य योजना आयोग द्वारा प्राप्त इन आंकड़ों को देखकर हम स्थिति का अंदाजा सुगमतापूर्वक लगा सकते हैं।

सरकारी अस्पतालों के रवैये से आम महिलाएं आज निजी अस्पतालों में जाना बेहतर समझती हैं। भारत वर्ष में कुल 8 लाख अस्पताल और 10 लाख से ज्यादा प्रशिक्षित चिकित्सक हैं। लेकिन इनमें से 80 प्रतिशत चिकित्सक निजी क्षेत्र के लिए कार्य करते हैं। आज भारत में स्वास्थ्य का क्षेत्र जनकल्याण के बजाय एक बाजार के रूप में विकसित हो गया है। स्वास्थ्य सेवाओं के नियोजन का स्वरूप इससे भी समझ सकते हैं कि हमारी जनसंख्या का 70 प्रतिशत आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में है और डिग्रीधारी प्रशिक्षित चिकित्सकों में से 2 तिहाई शहरी क्षेत्रों में कार्य करते हैं । स्वास्थ्य क्षेत्र पूरी तरह से शहरी रोग से ग्रस्त है। स्वास्थ्य क्षेत्र का 80 प्रतिशत बजट शहरी क्षेत्रों के हिस्से में चला जाता है। जब गांव का एक गरीब बिमार पड़ता है तो अपना घर और जमीन बेचकर शहर में इलाज कराने के अलावा और कोई रास्ता उसके पास नहीं बचता।

मातृत्व स्वास्थ्य के मुद्दे पर और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को समझ कर समुदाय के बीच में कार्य करने के दौरान प्राप्त हुए अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर इन स्थितियों में सुधार लाने के लिए स्वयं के स्तर से पहल करना होगा, स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने में समुदाय के लोगों के बीच जाना होगा । केवल सरकारी अमले पर ही दोषारोपण करके हम अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते। हमारी, आपकी और हम सबकी स्वास्थ्य सेवाओं पर जागरूकता और पहल कल के स्वस्थ्य भारत के निर्माण की पहली सीढ़ी बनेगी।

(लेखक- महिला स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से जुड़कर आजमगढ़ जनपद में समुदाय के बीच में सघन रूप से कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

बृजेश कुमार सिंह
संयोजक-यू0डी0एस0 ग्रामीण विकास
एवं शैक्षिक समिति, आजमगढ़
मो0- 9415840937 ई-मेल: मेीऋातपेदं/लंीववण्बवण्पद

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